Rahul Gandhi : चुनाव को लेकर जिस तरह से सियासत गर्म हैं। बता दें,कि राहुल गांधी ने अमेठी को छोड़कर रायबरेली की सीट से नामांकन कर दिया है। जंहा यह फैसला भले ही अंतिम लम्हों में हुआ लेकिन यह फैसला पार्टी ने एक रणनीति के तहत किया है।वहीं अमेठी का रण छोड़कर राहुल गांधी ने एक साथ कई निशाने साधे हैं। इसके पीछे कांग्रेस की सोची-समझी रणनीति नजर आती है। एक तो कमजोर संगठन, दूसरा हार के बाद क्षेत्र से दूरी सहित कई ऐसे कारण हैं, जिसका जवाब कांग्रेस नहीं खोज पा रही थी। ऐसे में एक बीच का रास्ता निकाला गया। नतीजन, करीब एक माह से अमेठी और रायबरेली में प्रत्याशी चयन को लेकर बने सस्पेंस पर अंतिम क्षणों में पर्दा उठा। राहुल गांधी के रायबरेली और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा के नामांकन के बाद कार्यकर्ता तक सकते में हैं। चाय-पान की दुकानों से लेकर सोशल मीडिया तक में यहीं छाया हुआ है। इसके नफा-नुकसान का आकलन हो रहा है।

Rahul Gandhi : मिली जानकारी के मुताबिक,वैसे गांधी नेहरू परिवार की सियासत पर निगाह डालें तो यह निर्णय बहुत अप्रत्याशित नहीं लगता। लेकिन रायबरेली और अमेठी में गांधी नेहरू परिवार की पकड़ के लिहाज से देखें तो रायबरेली का पलड़ा हमेशा भारी रहा हैं। पिछले चुनावों के नतीजों से लेकर जीत की लीड तक के आंकड़े इसे तस्दीक करते हैं। जाहिर तौर पर अमेठी की तुलना में रायबरेली गांधी परिवार के लिए कहीं अधिक सुरक्षित व मुफीद है।

Rahul Gandhi : आपको बता दें,कि पिछले दिनों सोनिया गांधी के राज्यसभा में जाने के बाद जारी किए गए उनके भावुक पत्र के बाद ही यह बड़ा सवाल खड़ा हुआ था कि रायबरेली में उनकी विरासत कौन संभालेगा। बेटा राहुल गांधी या फिर बिटिया प्रियंका गांधी। विरासत के सवाल का महज चार दशक का ही मंथन करें तो तस्वीर बिल्कुल साफ हो जाती है। 1980 में संजय गांधी की मौत के बाद जब बेटे राजीव गांधी और बहू मेनका गांधी में किसी एक के चयन की बात आई तो इंदिरा गांधी ने भी बेटे को तवज्जो दी थी। 1984 में मेनका गांधी बगावती तेवर अख्तियार कर राजीव गांधी के खिलाफ मैदान में उतरीं तो शिकस्त का मुंह देखना पड़ा।

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